आज गुरुवार के दिन भगवान विष्णु और देव गुरु बृहस्पति की पूजा की जाती है और गुरुवार का व्रत रखा जाता है. जो लोग गुरुवार का व्रत रखते हैं, उनको पूजा के समय गुरुवार व्रत कथा का पाठ या श्रवण अवश्य करना चाहिए. इससे व्रत का पूर्ण फल मिलेगी और बृहस्पतिदेव की कृपा से सभी दुख दूर होंगे और मनोकामनाएं पूरी होंगी।



व्रत कथा -

एक नगर में एक व्यापारी रहता था। वह जितना धनवान था, उतना ही दान पुण्य भी करता था। एक दिन वह जहाज में माल लेकर दूसरे देश चला गया। उसकी बेटी और पत्नी घर पर थे। पत्नी बहुत कंजूस थी। दान पुण्य नहीं करती थी। व्यापारी के विदेश जाते ही बृहस्पतिदेव साधु का वेश धारण करके उसके घर भिक्षा मांगने गए।


व्यापारी की पत्नी उनको देखकर दुखी हो गई। उसने कहा कि वह दान पुण्य से तंग हो गई। वह चाहती है कि उसका सारा धन नष्ट हो जाए। वह ऐसा धन नहीं चाहती कि उसे दान करना पड़ा। उसने बृहस्पतिदेव से धन नष्ट होने का उपाय पूछा।


बृहस्पतिदेव ने कहा कि लगातार 7 गुरुवार को घर को गोबर लीपना, पीली मिट्टी से बाल धोकर स्नान करना, मांस मदिरा का सेवन करना, घर पर कपड़े धोना। व्यापारी की पत्नी ने लगातार 3 गुरुवार तक ऐसा किया। उसका सारा धन दौलत नष्ट हो गया और व्यापाी पत्नी का निधन हो गया। काफी समय बाद जब व्यापारी लौट कर आया, तो देखा कि उसका सबकुछ बर्बाद हो गया है।


अब व्यापारी अपनी बेटी के साथ दूसरे नगर में रहने लगा। जंगल से लकड़ियां काटकर जीवनयापन करने लगा। एक दिन बेटी को दही खाने का मन हुआ, तो वह दही लाने की बात कहकर जंगल चला गया। वहां पेड़ के नीचे बैठकर रोने लगा। तब बृहस्पतिदेव साधु के वेश में उसके पास पहुंचे।


तब उसने अपनी सारी कहानी बृहस्पतिदेव को बताई। बृहस्पतिदेव ने कहा कि तुम गुरुवार को बृहस्पतिदेव का पाठ करो। दो पैसे का चना और गुड़ से बने पंचामृत को कथा सुनने वालों को प्रसाद स्वरूप बांट देना और स्वयं भी उसे ग्रहण करना। बृहस्पतिदेव तुम्हारा कल्याण करेंगे।


उस दिन उसकी लकड़ियों के अच्छे भाव मिले। वह दही, चना, गुड़ लेक घर गया। उसने बृहस्पतिदेव की कथा की और प्रसाद बांटा। स्वयं भी खाया। उस दिन से उसके दुख दूर होने लगे। अगले गुरुवार को वह बृहस्पतिदेव की कथा कहना भूल गया।


अगले दिन राज्य में भोज का आयोजन हुआ। व्यापारी अपनी बेटी के साथ भोज में देरी से पहुंचा, तो राजा ने उसे राजमहल में भोजन कराया। दोनों व्यापारी और उसकी बेटी घर आ गए। तभी रानी का हार चोरी होने का आरोप व्यापारी के बेटी पर लगा। राजा ने दोनों को जेल में डलवा दिया।


अगले दिन व्यापारी ने बृहस्पतिदेव का स्मरण किया। तब बृहस्पतिदेव साधु के वेश में वहां प्रकट हुए, उससे कहा कि जेल के द्वार पर तुमको दो पैसे मिलेंगे। उससे चना और मुनक्का मंगाकर बृहस्पतिदेव का पाठ करना।


व्यापारी ने सड़क पर जा रही एक महिला को गुड़ और चना लाने को कहा, तो उसने कहा कि उसके पास समय नहीं है। वह बेटे के लिए गहने लेने जा रही है। तभी दूसरी महिला आई, तो व्यापारी ने उससे भी गुड़ और चने लाने को कहा। उस महिला ने कहा कि वह बेटे के लिए कफन लेने जा रही है, लेकिन वह पहले गुड़ और चने लाएगी।


वह महिला पैसे लेकर गुड़ और चना लाई। तब व्यापारी ने बृहस्पतिदेव की कथा का पाठ किया और प्रसाद बांटा, स्वयं भी खाया, उस महिला को भी दिया। महिला वहां से कफन लेने गई और घर गई। लोग उसके बेटे को श्मशान ले जाने की तैयारी कर रहे थे। उस महिला ने बेटे के मुंह में चना और पंचामृत डाला। वह जीवित हो गया।


वह महिला जो बेटे के विवाह के लिए गहने लेने गई थी। उसका बेटा घोड़ी से गिरकर मर गया। उसने बृहस्पतिदेव से क्षमा मांगी। उसने बृहस्पतिदेव की कथा सुनी और चरणामृत बेटे के मुख में डाला, तो वह भी जीवित हो गया।


उसी रात बृहस्पतिदेव ने राजा को स्वप्न में बताया कि रानी का हार खूंटी पर ही टंगा है। व्यापारी और उसकी बेटी को छोड़ दो, वे निर्दोष हैं। अगले दिन व्यापारी और उसकी बेटी को राजा ने रिहा कर दिया। उसकी बेटी का उच्च कुल में विवाह कराया और व्यापारी को आधा राज्य दे दिया। बृहस्पतिदेव की कृपा से व्यापारी का जीवन फिर से खुशहाल हो गया।


श्री बृहस्पति देव की आरती

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