लोहड़ी की कहानी
लोहड़ी के त्योहार पर दुल्ला भट्टी की कहानी को खास रूप से सुना जाता है। दुल्ला भट्टी मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के वक्त पर पंजाब में रहता था। मध्य पूर्व के गुलाम बाजार में हिंदू लड़कियों को जबरन बेचने के लिए ले जाने से बचाने के लिए उन्हें आज भी पंजाब में एक नायक के रूप में माना और याद किया जाता है। उन्होंने जिनको बचाया था उनमें दो लड़कियां सुंदरी और मुंदरी थीं, जो बाद में धीरे-धीरे पंजाब की लोककथाओं का विषय बन गईं।
सुंदर मुंदरिये हो…
सुंदर मुंदरिये.............हो
तेरा कौन बेचारा, .............हो
दुल्ला भट्टी वाला, .............हो
दुल्ले घी व्याही,.............हो
सेर शक्कर आई, .............हो
कुड़ी दे बाझे पाई, .............हो
कुड़ी दा लाल पटारा, .............हो
कुड़ी दा सालू पाटा .............हो
सालू कौन समेटे .............हो
चाचा चुर्री कुट्टी .............हो
जमींदारा लुट्टी .............हो
ज़मींदार सुधाये .............हो
गिण गिण पौले लाऊ.............हो
इक पौला घट गया.............हो
जिमेंदार नट्ठ गया.............हो
यह गीत दुल्ला भट्टी वाले का यशोगान करता है। जिसने दो अनाथ कन्याओं, सुंदरी - मुंदरी की जबरन होने वाली शादी को रुकवा कर उनकी जान बचा कर उनकी यथासंभव जंगल में आग जलाकर और कन्यादान के रूप में केवल एक सेर शक्कर देखकर शादी की थी।
अंबियां पे अंबिया (हिमाचल की मशहूर लोहड़ी)
अंबियां पे अंबियां
बीण कणकां जमियां
कणकां बिच्च मुटेरे
दो साधू केरे
साधू गे कायो
का औया थोड़ा
अग्गैं मिल्ला घोड़ा
घोड़े उप्पर काठी
अग्गैं मिल्ला हाथी
हाथियैं फिचके दांद
जे गोपीचंद
चंद पकांदा रोटियां
दो दो अंगल मोटिया
खाणे जोवी छोटियां
खाने वाले खा गए रहने वाले रह गए
बच्चों की टोलियां इन गीतों को गाकर लोहड़ी मांगती हैं। और यदि कोई लोहड़ी देने में आनाकानी करता है। तो यह बच्चे उनकी इस तरह ठिठोली भी करते हैं।
हुक्के उत्ते हुक्का ए घर भुक्का !
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