ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ॥
त्रयंबकम - त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक)
यजामहे - हम पूजते हैं,सम्मान करते हैं,हमारे श्रद्देय।
सुगंधिम - मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक)
पुष्टि - एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली,समृद्ध जीवन की परिपूर्णता।
वर्धनम - वह जो पोषण करता है,शक्ति देता है, (स्वास्थ्य,धन,सुख में)
वृद्धिकारक - जो हर्षित करता है,आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है,एक अच्छा माली।
उर्वारुकम - ककड़ी (कर्मकारक)।
इव - जैसे,इस तरह।
बंधना - तना (लौकी का); ("तने से" पंचम विभक्ति - वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)।
मृत्युर - मृत्यु से।
मुक्षिया - हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें।
मा - न।
अमृतात - अमरता
मंत्र का पूरा अर्थ - हम त्रिनेत्र को पूजते हैं, जो सुगंधित हैं, हमारा पोषण करते हैं, जिस तरह फल, शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है, वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।
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